Saturday, November 7, 2009

ऐसी मारा-मारी

हम भूल गायें उन वीरों को और भूल चुके उनकी बलिदानी

अब याद नही रहता हमको उनकी वीर गाथा और कहानी

क्यूं रोमांचीत नही होते हम और खौलता नही रक्त हमारा ?

कहाँ गयी वह राष्ट्र भावना कहाँ गम हुआ देश हमारा ?

गोली खाने वाले सीने रक्षा करने वाले हाथ

दशकों पहले छोड़ चुके क्यूँ अपना साथ ?

लूट रहे हम सब मिलकर के भारत माता के चीर को

कैसे दोष दे दें भला किसी द्युतानुरागी युधिस्ठिर को !

यह कैसी अंधी दौड़ लगी है , सब पड़-पैसे की माया है,

तू मातृभूमी की सोच रहा, अबे किस जहाँ से आया है ?

ख़ुद से आगे नहीं सोचते, ख़ुद को खुदा समझते हैं

अब ख़ुद ही के लिए जीते हैं, ख़ुद के लिए ही मरते हैं !

यह खुदगर्जी महँगी है , एक दिन पड़ेगी भारी

एक निशान भी नही बचेगा , फिर भी ऐसी मारा-मारी !

3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
    करें

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