और खाने के लिए तड़पेंगे बच्चे उनके
और खलेगी हमेशा ही कमी उनको
और तोड़ेंगे बार-बार कसमें अपनी
और गिरते रहेंगे अपनी नजरो में
और दूसरों को छलेंगे हमेशा ही
और रहेंगे सहमे से कभी ज़रूर
और दूरी बनाये रखेंगे सबसे
और चोर नज़रो से देखेंगे अपने ही घर को
और रोयेंगे भी कभी अकेले में
और न जाने क्या-क्या करते होंगे
कभी खुल कर कभी चोरी से
कभी एकांत में कभी समूह में
और न जाने गिरते -पड़ते होंगे कहाँ-कहाँ
कभी उजाले में और कभी अँधेरे में
वो, जो इन्सान नहीं रह जाते
डूब कर नशे के दलदल में
Saturday, January 23, 2010
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