पिछले एक ही सदी के अंतराल में
बहुत कुच्छ विलुप्त हो गए इस धरती से
जैसे अनेकों बाघ, जातियां और बोलियाँ
जैसे ठहाके लगाती बेफिक्र बैठी टोलियाँ
सावन के झूले और प्यार के गीत
चाची और भाभी के निस्च्चल प्रीत
जैसे दूरदर्शन के रविवारीय कार्यक्रम
दिल टूटने पर पहाड़ -सा बोझिल गम
मेलों में दिखना कठपुतली के करतब
कारीगरी में दिखलाना हाथों का दहब