Thursday, February 11, 2010


पिछले एक ही सदी के अंतराल में


बहुत कुच्छ विलुप्त हो गए इस धरती से


जैसे अनेकों बाघ, जातियां और बोलियाँ


जैसे ठहाके लगाती बेफिक्र बैठी टोलियाँ


सावन के झूले और प्यार के गीत


चाची और भाभी के निस्च्चल प्रीत


जैसे दूरदर्शन के रविवारीय कार्यक्रम


दिल टूटने पर पहाड़ -सा बोझिल गम


मेलों में दिखना कठपुतली के करतब


कारीगरी में दिखलाना हाथों का दहब





Tuesday, February 9, 2010

जबकि मालूम है ------

जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि आता नहीं गुजरा वक्त दुबारा
फिर भी करते रहता इंतज़ार तुम्हारा
अकेले बैठे उसी जगह पर
जहाँ छोड़ गए थे तुम निशानी अपनी
जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि आवाज तुम्हारी सुन न सकूंगा
फिर भी ढेरों शिकवा करता
और करता रहता हूँ वही सवाल
जिन्हें कहते थे तुम नादानी अपनी
जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि लोग और भी हैं करोडो यहाँ
और रास्तें लाखों हैं चलने को
और हजारों बहाने हैं जीने को
फिर भी उसी झूठ पर कायम हूँ
जिसे बनाया था सच्ची कहानी अपनी.