Friday, May 8, 2009

ज़माने की फिक्र है जिन्हें वो डरते है ज़माने से

अपने को मतलब नही इस पागलखाने से

वाकई कुछ और भी पागल है मेरे सिवा इस जहाँ में

समझते है ख़ुद को जो सबसे जुदा इस जहाँ में

हद तक जज्बा है जिनमे जीने की इस जहाँ में

जो बेदाग हैं बने हुए इस दागी जहाँ में

है माद्दा जिनमे बदलने की इस जहाँ को

परवाह नही है जिनको इस जहाँ की

रहतें हैं जो इसी जहाँ में कहीं

लगते नहीं हैं पर जो इस जहाँ की