हम भूल गायें उन वीरों को और भूल चुके उनकी बलिदानी
अब याद नही रहता हमको उनकी वीर गाथा और कहानी
क्यूं रोमांचीत नही होते हम और खौलता नही रक्त हमारा ?
कहाँ गयी वह राष्ट्र भावना कहाँ गम हुआ देश हमारा ?
गोली खाने वाले सीने रक्षा करने वाले हाथ
दशकों पहले छोड़ चुके क्यूँ अपना साथ ?
लूट रहे हम सब मिलकर के भारत माता के चीर को
कैसे दोष दे दें भला किसी द्युतानुरागी युधिस्ठिर को !
यह कैसी अंधी दौड़ लगी है , सब पड़-पैसे की माया है,
तू मातृभूमी की सोच रहा, अबे किस जहाँ से आया है ?
ख़ुद से आगे नहीं सोचते, ख़ुद को खुदा समझते हैं
अब ख़ुद ही के लिए जीते हैं, ख़ुद के लिए ही मरते हैं !
यह खुदगर्जी महँगी है , एक दिन पड़ेगी भारी
एक निशान भी नही बचेगा , फिर भी ऐसी मारा-मारी !