Saturday, January 23, 2010

उनकी halat

और खाने के लिए तड़पेंगे बच्चे उनके
और खलेगी हमेशा ही कमी उनको
और तोड़ेंगे बार-बार कसमें अपनी
और गिरते रहेंगे अपनी नजरो में
और दूसरों को छलेंगे हमेशा ही
और रहेंगे सहमे से कभी ज़रूर
और दूरी बनाये रखेंगे सबसे
और चोर नज़रो से देखेंगे अपने ही घर को
और रोयेंगे भी कभी अकेले में
और न जाने क्या-क्या करते होंगे
कभी खुल कर कभी चोरी से
कभी एकांत में कभी समूह में
और न जाने गिरते -पड़ते होंगे कहाँ-कहाँ
कभी उजाले में और कभी अँधेरे में
वो, जो इन्सान नहीं रह जाते
डूब कर नशे के दलदल में

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