Thursday, February 11, 2010


पिछले एक ही सदी के अंतराल में


बहुत कुच्छ विलुप्त हो गए इस धरती से


जैसे अनेकों बाघ, जातियां और बोलियाँ


जैसे ठहाके लगाती बेफिक्र बैठी टोलियाँ


सावन के झूले और प्यार के गीत


चाची और भाभी के निस्च्चल प्रीत


जैसे दूरदर्शन के रविवारीय कार्यक्रम


दिल टूटने पर पहाड़ -सा बोझिल गम


मेलों में दिखना कठपुतली के करतब


कारीगरी में दिखलाना हाथों का दहब





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