जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि आता नहीं गुजरा वक्त दुबारा
फिर भी करते रहता इंतज़ार तुम्हारा
अकेले बैठे उसी जगह पर
जहाँ छोड़ गए थे तुम निशानी अपनी
जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि आवाज तुम्हारी सुन न सकूंगा
फिर भी ढेरों शिकवा करता
और करता रहता हूँ वही सवाल
जिन्हें कहते थे तुम नादानी अपनी
जबकि मालूम है मुझको अच्छी तरह
कि लोग और भी हैं करोडो यहाँ
और रास्तें लाखों हैं चलने को
और हजारों बहाने हैं जीने को
फिर भी उसी झूठ पर कायम हूँ
जिसे बनाया था सच्ची कहानी अपनी.
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